3 सालों से मुर्दाघर में पड़ी एक महिला की लाश के मामले को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए कहा कि भले ही मृतक की पहचान स्थापित ना हो पायी हो लेकिन इसके बावजूद किसी भी नागरिक का सम्मानपूर्वक अंतिम-संस्कार किया जाना संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत ‘जीवन के अधिकार’ का ही हिस्सा है.
न्यायालय ने अपनी टिप्पणी में कहा कि-
“मृतकों की चुप्पी उनकी आवाज़ को नहीं दबाती, न ही उनके अधिकारों को ख़त्म करती है. मृतकों के अपने अधिकार हैं, जो जीवित लोगों से कम मूर्त नहीं हैं…”