सीवर सफ़ाई के दौरान मौत हो जाने पर 30 लाख का मुआवज़ा मिलना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट
- बोशल
- October 21, 2023
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संयुक्त राष्ट्र(UN) की विशेष रिपोर्टर फ्रांसेस्का अल्बानेसे(Francesca Albanese) ने कहा है कि अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंध उन्हें गाज़ा(Gaza) में हो रहे नरसंहार और उससे लाभ उठाने वालों को उजागर करने से नहीं रोक सकते। उन्होंने कहा कि ये प्रतिबंध उन्हें न्याय और अंतरराष्ट्रीय कानून के लिए काम करने से नहीं रोक पाएंगे। अल्बानेसे, जो गाज़ा और फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों में मानवाधिकारों की निगरानी करती हैं, पर अमेरिका ने प्रतिबंध लगा दिए हैं। इन प्रतिबंधों के तहत अब वे अमेरिका की यात्रा नहीं कर सकतीं और उनकी अमेरिका में संपत्ति फ्रीज कर दी गई है। अल्बानेसे ने इन्हें “माफिया स्टाइल की धमकी” बताते हुए कहा कि वे न्याय और सच्चाई की अपनी लड़ाई जारी रखेंगी। उन्होंने इज़राइल पर नरसंहार और युद्ध अपराधों के आरोप दोहराए। संयुक्त राष्ट्र ने अमेरिका के इस कदम को “खतरनाक मिसाल” बताया है और कहा है कि विशेष रिपोर्टर पर इस तरह के हमलों को तुरंत रोका जाना चाहिए।
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Maharashtra के ठाणे जिले में एक ऑल-गर्ल्स स्कूल में Periods की जांच के नाम पर छात्राओं के कपड़े उतरवाने का गंभीर आरोप लगा है। घटना का खुलासा तब हुआ जब एक मां ने शिकायत दर्ज कराई कि उसकी बेटी को बिना पीरियड के भी सैनिटरी पैड न पहनने पर फटकारा गया। शिकायत के मुताबिक, कक्षा 5वीं से 10वीं तक की छात्राओं को एक हॉल में बुलाकर प्रोजेक्टर पर खून के धब्बे दिखाए गए और मासिक धर्म चलने पर हाथ उठाने को कहा गया। पुलिस ने दो महिलाओं को गिरफ्तार किया है और स्कूल के अन्य चार शिक्षकों व दो ट्रस्टियों के खिलाफ भी जांच जारी है।
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एक रिपोर्ट के मुताबिक, गाज़ा में 700 से ज़्यादा फिलिस्तीनियों की मौत तो सिर्फ़ उस दौरान ही हो गई जब वो Gaza Humanitarian Foundation के राहत केंद्रों से खाना और ज़रूरत की चीज़ें लेने गए थे। भीड़ में गोलीबारी, हवाई हमले या भगदड़ जैसे हालात में ये जानें गईं, जिससे मानवीय त्रासदी और गहरा गई है। मरने वालों में छोटे बच्चों, युवाओं और बुजुर्गों की कई दर्दनाक कहानियाँ सामने आई हैं — कोई अपनी बहन के लिए खाना लेने निकला था, तो कोई बीमार माँ के लिए दवा।
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि नागरिकता तय करना चुनाव आयोग (ECI) की नहीं, बल्कि गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी है। यह टिप्पणी बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) पर सुनवाई के दौरान दी गई। कोर्ट ने ECI से आधार, वोटर ID और राशन कार्ड जैसे दस्तावेज़ों को स्वीकार करने को कहा। न्यायमूर्तियों ने चुनाव से पहले पुनरीक्षण की जल्दबाज़ी और व्यावहारिकता पर सवाल उठाए। कोर्ट ने चेताया कि अगर प्रक्रिया सही नहीं रही तो लोगों का मतदान का अधिकार छीना जा सकता है।
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हिरासत में यातना देने पर पुलिसवालों पर चलेगा मुकद्दमा! केरल हाई कोर्ट ने एक महिला घरेलू सहायिका को हिरासत में यातना देने के आरोपी चार पुलिस अधिकारियों के ख़िलाफ़ ट्रायल कोर्ट में मुक़दमा चलाने का आदेश दिया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि हिरासत में अत्याचार को किसी भी सूरत में आधिकारिक कर्तव्यों का हिस्सा नहीं माना जा सकता। पीड़िता ने शिकायत में बताया कि चोरी के एक मामले में पूछताछ के लिए उसे तीन महिला पुलिस कांस्टेबलों द्वारा थाने लाया गया था, जहां उसके साथ शारीरिक और मानसिक रूप से क्रूर व्यवहार किया गया। आरोपों के अनुसार, पुलिस ने उसे डंडे और छड़ी से पीटा, उसका सिर दीवार पर मारा, गला दबाया और पेट पर लात मारी। मेडिकल जांच में भी महिला के शरीर पर गंभीर चोटों के निशान पाए गए। अदालत ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि “हिरासत में दी गई यातना सभ्य समाज में सबसे घिनौने अपराधों में से एक है। पुलिसकर्मियों को कानून से ऊपर नहीं माना जा सकता।”
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आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने सभी न्यायिक मजिस्ट्रेट को निर्देश दिया है कि वे सोशल मीडिया पोस्ट/टिप्पणी से जुड़े मामलों में अभियुक्तों को रिमांड पर भेजने से पहले Supreme Court के ‘अर्नेश कुमार बनाम बिहार’ (2014) और ‘इमरान प्रतापगढ़ी बनाम गुजरात राज्य’ मामलों में निर्धारित दिशानिर्देशों का कड़ाई से पालन करें। न्यायालय द्वारा जारी सर्कुलर में कहा गया है कि यदि कोई मजिस्ट्रेट इन दिशानिर्देशों का उल्लंघन करता है, तो उसे उच्च न्यायालय की अवमानना और विभागीय कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है। इमरान प्रतापगढ़ी केस के हवाले से यह भी कहा गया कि ऐसे मामलों में FIR दर्ज करने से पहले DSP स्तर के अधिकारी की अनुमति से प्रारंभिक जांच अनिवार्य है, जो अधिकतम 14 दिनों में पूरी होनी चाहिए। यह कदम सोशल मीडिया से जुड़ी पोस्ट के खिलाफ आपराधिक कानूनों के दुरुपयोग और मनमानी गिरफ्तारी पर रोक लगाने के लिए लिया गया है।
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