जस्टिस लोकुर ने कहा कि नेताओं से जुड़े भ्रष्टाचार के सभी मामलों में राजनीतिक प्रतिशोध का आरोप लगाना बहुत मुश्किल है लेकिन संदेह तब पैदा होता है जब किसी संदिग्ध की वफ़ादारी बदल जाने पर जाँच को बीच में ही छोड़ दिया जाता है, आजकल जब किसी को गिरफ़्तार किया जाता है तो आपको इतना तो पक्का पता होता है कि ये आदमी इतनी जल्दी जेल से बाहर नहीं आएगा। आजकल जब कोई गिरफ़्तार किया जाता है तो कुछ महीनों तक वह ऐसे ही जेल में रहता है फिर कुछ दिनों बाद एक अधूरा आरोप पत्र दायर होता है, उसके बाद बहुत दिनों बाद कुछ दस्तावेज प्रस्तुत किए जाते हैं, व्यथित करने वाली बात ये है कि अदालतें इन साफ़ साफ़ दिखने वाली अजीब बातों पर गौर ही नहीं करना चाहतीं, उन्होंने कॉलेजियम प्रणाली की सराहना करते हुए कहा कि न्यायपालिका को जीवन की असलियत को लेकर जागरूक होना चाहिए।
अदालतें जमानत देने और न देने के बुनियादी सिद्धांतों को भूल गई हैं: पूर्व न्यायाधीश सुप्रीम कोर्ट
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वकील की मौत पर शोक व्यक्त करने के हिमाचल हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के तरीक़े से नाराज़ हुआ सुप्रीम कोर्ट; जारी किया नोटिस।
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