16 नवम्बर को म्यूनिख साहित्य महोत्सव में लेखक अरुंधति रॉय ने कहा कि ग़ज़ा की घेराबंदी मानवता के खिलाफ अपराध है। दुनिया को हस्तक्षेप करना चाहिए।
यदि यह युद्ध नहीं रुका तो हमारे नैतिक स्वभाव में कुछ हमेशा के लिए बदल जाएगा क्या हम बस खड़े होकर देखते रहेंगे जब अस्पतालों पर बमबारी होगी, दस लाख लोग विस्थापित होंगे और हजारों की संख्या में मृत बच्चों को मलबे से बाहर निकाला जाएगा?
यह व्यवसाय ही है जो इस शैतानी सोच को बढ़ावा दे रहा है। यह अपराधियों और पीड़ितों दोनों पर हिंसा कर रहा है। पीड़ित मर चुके हैं।अपराधियों को अपने किये के अनुसार जीना होगा। उनके बच्चे भी ऐसा ही करेंगे।