उच्च न्यायालय ने कहा कि कैदियों को प्रत्यक्ष रूप से पेश करना एक बोझिल प्रक्रिया है, जिसमें समय, धन और संसाधन खर्च होते हैं। इससे बेहतर है कि अदालतों को जरूरी धन उपलब्ध कराकर स्क्रीन और वीडियो-कॉन्फ्रेंस की सुविधाएं प्रदान की जाएं। एक याचिकाकर्ता ने यह मुद्दा उठाया था जिसमें उसकी जमानत की अर्जी को 23 बार स्थगित किया गया था। न्यायालय ने कहा कि यदि वीडियो कॉन्फ्रेंस की सुविधा राज्य की सभी अदालतों को उपलब्ध कराई जाती है तो आरोपी व्यक्तियों को पेश करना आवश्यक नहीं होगा।