दिल्ली में हवा की गुणवत्ता खराब होने की आशंका, GRAP चरण 2 लागू
- बोशल
- October 21, 2023
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Science & Research: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने भारत के उभरते वैज्ञानिकों और शोधकर्ता छात्रों को 8 महीने से स्कॉलरशिप नहीं दी है। अपनी योग्यता के बलबूते आए इन शोधार्थियों ने इस मांग को लिंक्डइन और एक्स पर उठाया। भारत के केन्द्रीय एवं राज्य विश्वविद्यालयों तथा वैज्ञानिक विषयों के शोध छात्र, अपने शोध वजीफे के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) से गुहार लगा रहे हैं। 2008 में शुरू की गई INSPIRE फ़ेलोशिप का उद्देश्य ही यह सुनिश्चित करना था कि विज्ञान के लिए योग्यता और प्रतिभा रखने वाले छात्रों को बुनियादी विज्ञान में शोधकर्ता बनने के लिए वित्तीय रूप से प्रेरित किया जाए। हर साल, लगभग 1,000 डॉक्टरेट उम्मीदवारों को यह छात्रवृत्ति प्रदान की जाती है। शोधार्थियों का कहना है कि धन के वितरण में तीन या चार महीने की देरी आम बात है, पर 8 से 13 महीने की देरी हताश कर रही है।
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मेट्रो_चिक्स नामक गुमनाम इंस्टाग्राम अकाउंट चलाने वाले दिगंत नामक 27 वर्षीय व्यक्ति को बंगलुरु पुलिस ने गिरफ़्तार किया। यह व्यक्ति बिना सहमति के नम्मा मेट्रो में यात्रा कर रही महिलाओं के वीडियो और फोटो लेकर, उनके अश्लील वीडियो बनाकर पोस्ट कर रहा था। आरोपी ने बताया कि अभी तक पोस्ट किए गए सभी 13 वीडियो आरोपी ने खुद रिकॉर्ड किए थे। इस अकाउंट के 5900 से अधिक फॉलोअर्स हैं।
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Electoral Bond : स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (SAIL) को करोड़ो रुपए का घाटा पहुंचाने वाली कंपनियों में मुख्य कंपनी पर आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी, जालसाजी,नकली दस्तावेजों का उपयोग, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के उल्लंघन का आरोप। लोकपाल के जांच में सामने आया है कि लखनऊ के पते पर पंजीकृत APCO ने 15 जनवरी, 2020 से 12 अक्टूबर, 2023 के बीच 30 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड खरीदे, जिन्हें बाद में भाजपा ने भुना लिया। चुनावी बॉन्ड खरीदने के दौरान सरकार की तरफ़ से APCO को कई महत्वपूर्ण और प्रतिष्ठित सरकारी अनुबंध मिले हैं, जिनकी कीमत हज़ारों करोड़ रुपये है। VVPIL नामक एक कंपनी भी SAIL घोटाले में शामिल है और ऐसी 43 कंपनियों ने काल्पनिक सरकारी परियोजनाओं की आड़ में सैल से सस्ते दामों में स्टील खरीदा और इन्हें अन्य को बेचा। जबकि इन काल्पनिक कंपनियों का कहना था कि वे सरकारी परियोजना जैसे सड़क निर्माण और पुलों के निर्माण में लगी हैं।इसकी शिकायत करने वाले SAIL के एक अधिकारी राजीव भाटिया ने PMO में पत्र लिखकर कई बार शिकायत की पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। हुआ ये कि राजीव भाटिया को ही नौकरी से रिटायरमेंट लेना पड़ा। (अंकित राज, द वायर)
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Antibiotics pollution: भारत की नदियाँ एंटी-बायोटिक्स प्रदूषण का सामना कर रही हैं। मैकगिल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के मुताबिक एंटीबायोटिक्स, शरीर में पूरी तरह नहीं पच पाती हैं, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट भी इन्हें पूरी तरह साफ नहीं कर पाते। जिसके कारण इन एंटीबायोटिक्स का एक बड़ा हिस्सा शरीर से होता हुआ नदियों समेत अन्य वाटर बॉडीज़ तक पहुँच जाता है। इसकी वजह से यह जल स्रोत दूषित हो रहे हैं।नदियों में सबसे ज़्यादा सेफ़िक्सीम नाम की एंटी-बायोटिक पायी गई है जो ब्रोंकाइटिस नाम की फेफड़ों की बीमारी में दी जाती है।एंटीबायोटिक्स प्रदूषण की वजह से भारत में इसकी वजह से लगभग 32 करोड़ लोगों को खतरे का सामना करना पड़ सकता है।
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भारत ने एक खतरनाक केमिकल, क्लोरपाइरीफोस(Chlorpyrifos), को प्रतिबंधित श्रेणी में डालने का विरोध किया है। भारत ने यह फैसला जिनेवा में चल रही ‘स्टॉकहोम कन्वेंशन ऑन परसिस्टेंट आर्गेनिक पॉल्युटेंट्स(POP)’ की वार्षिक मीटिंग के दौरान लिया। यह केमिकल 40 से अधिक देशों द्वारा पहले ही प्रतिबंधित किया जा चुका है। इसका इस्तेमाल सबसे ज़्यादा कपास, बैंगन, गन्ना, गेहूं, जौ, मक्का और गन्ना, चुकंदर, गोभी और प्याज आदि की फसलों के संरक्षण में किया जाता है। लंबे समय तक क्लोरपाइरीफोस के संपर्क में रहने से फेफड़े और प्रोस्टेट कैंसर की संभावना बहुत बढ़ जाती है। इसके अलावा इसकी वजह से मस्तिष्क के विकास में भी बाधा आती है।
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Climate Change : दुनियाभर के 56% मैंग्रोव वनों पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है। स्विट्ज़रलैंड और अमेरिका के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित एक नए जोखिम सूचकांक (Risk Index) के अनुसार, वर्ष 2100 तक दुनिया के 56% मैंग्रोव वन गंभीर खतरे में आ जाएँगे। इससे भी चिंताजनक बात यह है कि करीब 34 प्रतिशत सबसे मूल्यवान मैंग्रोव क्षेत्र, जो समुद्री तटों की सुरक्षा, कार्बन भंडारण और मछली पालन जैसे महत्वपूर्ण पारिस्थितिक सेवाएं प्रदान करते हैं, वे गंभीर और संभवतः अपूरणीय क्षति(Irreversible) का सामना कर सकते हैं। वैज्ञानिकों ने इस स्थिति को “रीजाइम शिफ्ट” (Regime Shift) कहा है, जिसका अर्थ है कि पारिस्थितिकी तंत्र इतनी गहराई से बदल सकता है कि वह अपनी मौजूदा स्थिति में कभी वापस न लौट पाए। यह स्थायी क्षति समुद्र स्तर में वृद्धि और उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की बढ़ती तीव्रता के कारण हो सकती है। यह शोध 5 अप्रैल 2025 को Communications Earth & Environment जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
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