BoCial ( बोशल )

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“8000 अतिथियों के लिए 13000 सुरक्षाकर्मी तैनात किए गए ताकि रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जा सके। यह सुविधा और खर्च प्रधानमंत्री के अतिरिक्त उन लोगों के लिए था जिन्हें न लोगों ने चुना और न ही जो जनहित के मुद्दों पर कभी सड़क पर आते हैं, जो जनता को दूर से हाथ हिलाकर ही मिलना पसंद करते हैं, जिनके घरों में ग़रीबी, बेरोज़गारी और भुखमरी जैसी बातों पर कोई चर्चा नहीं होती, जिन्हें न ही भारत की प्रेस स्वतंत्रता से मतलब है न ही लोकतंत्र के मूल्यों से, जिन्हें संविधान को याद करने की ज़रूरत नहीं। ऐसे लोगों पर राम मंदिर के लिये जनता से आये धन को खर्च करने का क्या औचित्य है? लोग कह रहे हैं कि 550 सालों के इंतज़ार के बाद यह दिन आया है लेकिन सोचने की बात तो यह है कि सैकड़ों वर्षों बाद भी जब रामलला प्रकट हुए तब उन्हें साक्षात देखने की सुविधा के लिए देश के धनपतियों को ही क्यों चुना गया? शबरी वाले राम कब सेलिब्रिटी वाले राम बन गये पता ही नहीं चला”।